**अध्यात्म पथ पर साधकों को कई बार कड़वी और कटाक्ष भरी बातों की गोलियाँ खानी पड़ती है।**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

एक साधक के जीवन में अनेकों संघर्ष और तनाव के पल आते हैं। जिंदगी निरंतर मानसिक दबाव व लुभावने प्रस्ताव देती है, ताकि वे साधना मार्ग को त्याग कर भौतिक वादी जीवन अपना लें। यह चकाचौंध पूर्ण सांसारिक जीवन उन्हें पैसा, पद, मान सम्मान, रिस्ते नाते, रोमांच, आराम की नींद देने का वादा करता है।पर एक सच्चा साधक इन लुभावने प्रस्तावों को अनसुना कर अध्यात्म मार्ग पर चलता रहता है। वह उस दिव्य भजन की पंक्तियाँ याद रखता है---

'बनाना है बैकुंठ गर इस धरा को,

समर्पण की धुन गुनगुनानी पड़ेगी।

अमावस से काले घने घोर तम में, 

ब्रह्मज्ञान की लौ जगानी पड़ेगी।।'

   जैसे जैसे एक साधक अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ता है, वैसे वैसे परीक्षाएं भी सामने आती हैं। इन परिस्थितियों को देख साधक को पीछे नहीं हटना चाहिए। जब वह इन चुनौतियों को पार कर जाता है, तो वह मजबूत बनता है। संघर्षों से भरा पथ एक साधक के लिए ईश्वरत्व का मार्ग-- 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' बन जाता है। इन परीक्षाओं को लेने वाले गुरुदेव जानते हैं कि उनके शिष्य को अभी कितना इन परीक्षाओं से गुजारना है और यह भी जानते हैं कि उनका शिष्य कितना सह सकता है।

  साधना के मार्ग पर बहुत ही ध्यान से अपने कदम रखने पड़ते हैं, क्योंकि यह मार्ग काफी संकरा है।उपनिषद कहते हैं-- 'क्षुरस्य धारा'-- यह छूड़ी की धार के समान है। नजर हटने भर की देरी है कि हम फिसलकर विकारों रूपी आग की लपटों में गिर कर झुलस सकते हैं।

  जब एक साधक अध्यात्म पथ पर चलता है, तो कई बार कड़वी और कटाक्ष भरी बातों की गोलियाँ खानी पड़ती है, जिससे उसका मन विचलित हो जाता है। जब हम कच्चे अधपके साधक होते हैं, तो बिना सोचे समझे प्रतिक्रिया दे देते हैं। लेकिन एक सच्चा और पक्का साधक तो वह है जो ऐसे वचनों को सुनकर भी पूरे होशो हवास में रहकर विनम्रता से जवाब व प्रतिक्रिया दे और अपने गुरु के द्वारा दिए हुए कार्य को करता रहे। फालतू की बातों को नजरअंदाज कर सतत साधना पथ पर चलता रहे।

**ओम् श्री आशुतोषाय नमः**

"श्री रमेश जी"

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