**हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहना चाहिए। जो भी हमें मिला है, हम उसके लिए ईश्वर के कृतज्ञ रहें।**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

अयाज घास काटने वाला एक साधारण सा माली था।पर भाग्य ने ऐसी पलटी खाई कि उसकी मित्रता महमूद गजनवी से हो गई।राजा के साथ दोस्ती के चलते अयाज को प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त कर दिया गया।मंत्रीमंडल इस बात से खफा हो गए। लेकिन वास्तव में अयाज में प्रधानमंत्री का पद पाने की सारी विशेषताएं थी। पर मंत्रीमंडल अयाज को गजनवी की नजरों में नीचा दिखाने का मौका तलाश करता रहता था।

   एक बार उन्होंने राजा से शिकायत की कि अयाज रोज शाम के चार बजे अकेले खजाने की ओर जाता है। अगले दिन शाम को राजा महमूद दबे पाँव अयाज के पीछे पीछे चल दिया। अयाज खजाने के कक्ष में घुस गया। राजा बाहर झरोखे से ही अयाज पर नजर रखे हुए था। किंतु जब उसने अंदर का नजारा देखा तो वो चौंक गया।उसने देखा कि अयाज ने मंत्री वाली वेश भूषा एक तरफ रखकर घास काटने वाले कपड़े पहन लिए थे।सामने घास काटने वाले औजार रखकर प्रार्थना करने लगा- 'हे ईश्वर यह मंत्री का पद तुम्हारा है, मेरा कुछ नहीं। हे मालिक! न मुझमें कोई काबिलियत, न मेरे पुण्य कर्म। आपने जो भी दिया है, उसके लिए मैं आपको कोटि कोटि धन्यवाद देता हूँ। बस इतनी दया और करना कि मुझे कभी मेरी औकात न भूले।

   सच में अयाज का शुकराना हमें प्रेरणा देता है कि हमें भी अपनी जड़ों से जुड़े रहना चाहिए। जो भी हमें मिला है, हम उसके लिए हमेशा ईश्वर के कृतज्ञ रहें। हम यह दंभ न भरें कि हमारी काबिलियत के कारण हमें कुछ मिला है।हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि जो भी शुभ हमारे जीवन में घटा है, वह उस ईश्वर की कृपा से ही घटा है। इसलिए सदैव हर श्वास में ईश्वर के दिए हुए का शुकराना करते रहें।

**ओम् श्री आशुतोषाय नमः**

"श्री रमेश जी"

Post a Comment

Previous Post Next Post