सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
जब भी किसी बात से मन घबराने लगता है, किसी दुर्घटना के घट जाने का डर हमें बेचैनी पैदा करने लगता है.. तब मन के किसी कोने में यह आस होती है-- "भगवान सब ठीक करेंगे।" लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें भगवान से ही डर लगता है। उनके अनुसार अगर जीवन में कुछ ठीक नहीं है, तो उसके लिए भगवान ही जिम्मेदार है।जरूर भगवान ने ही कोप बरसाया है। सुनने में अजीब लगता है, किंतु हकीकत है। ऐसे ही बहुत से डर हैं, जो कुछ लोगों के भीतर अध्यात्म को लेकर दिखते हैं। इस कारण से वे लोग ईश्वर से दूर ही रहना पसंद करते हैं।
आइंस्टीन जैसे वैज्ञानिक यह कहने पर विवश हो गए-- "इन पेड़ों को देखकर जिनकी जड़ें धरती के नीचे से पानी खोज लेती हैं, ये फूल देखकर जिनकी महक भंवरों को खींच लेती है.. ऐसा लगता है हम सब एक रहस्यमयी धुन के इशारों पर नाच रहे हैं। हम चाहे उसे भगवान कह लें या रचनात्मक शक्ति, पर यह निश्चित है कि वह किताबी ज्ञान से परे का विषय है।
इतना ही नहीं! अध्यात्म जगत के वैज्ञानिक पूरे दावे से कहते हैं-- ब्रह्म ही सबकुछ है। यह सारा जगत ब्रह्म से ही उत्पन्न हुआ है और अंततः उसी में विलीन हो जाएगा। उनका यह कथन कोरी कल्पना पर नहीं, प्रत्यक्ष अनुभूति पर आधारित होता है। वे मुक्त कंठ से ऐलान करते हैं-- "वेदाहमेतम् पुरुषम् महान्तमादित्यवर्णं..। मैं उस महान पुरुष अर्थात ईश्वर को जानता हूँ, जो सूर्य की भांति उज्जवल है और अंधकार से बिल्कुल परे है।
ईश्वर के बारे में सोचना ईश्वर का आनंद लेने का विकल्प नहीं है। ईश्वर पर बड़ी बड़ी बहस कर लेना, उसका अनुभव करने के समान नहीं है। जो वास्तव में अनुभव कर लेता है, वह जान लेता है कि ईश्वर तर्क वितर्क का विषय है ही नहीं।
एक बार आदिगुरु शंकराचार्य अपने शिष्यों को वेदों पर उपदेश दे रहे थे। तभी वहां एक ब्राह्मण आए और आदि शंकर से पूछने लगे-- आप कौन हैं?उनके शिष्यों ने कहा, ये हमारे गुरुदेव शंकराचार्य जी हैं। ऐसा सुनने पर ब्राह्मण बोले-- मैं शंकराचार्य से ब्रह्म सूत्रों के विषय में कुछ पूछना चाहूँगा। आदि शंकराचार्य जी ने विनम्र भाव से हाथ जोड़ दिए। तब उन ब्राह्मण ने ब्रह्म सूत्र में
निहित तथ्यों के संबंध में एक एक करके प्रश्न पूछने शुरू किए। शंकराचार्य जी हर प्रश्न का उचित उत्तर देते रहे। इस प्रकार अविरल वेग से होते शास्त्रार्थ कोआठ दिन बीत गए। अंत में शंकराचार्य जी का शिष्य पद्मपाद करबद्ध होकर ब्राह्मण से बोले- मैं समझ गया हूँ आप महर्षि व्यास ही हैं। जिससे आप शास्त्रार्थ कर रहे हैं वे महादेव शिव ही हैं। आपने यह जो शास्त्रार्थ की लंबी लड़ी चलाई-- इसका अभिप्राय भी हमें ज्ञात हो गया है। आपने यह सब हमें शिक्षा देने हेतु ही किया है।
इसके बाद दोनों ने एक दूसरे को झुककर प्रणाम किया। साथ ही जगत के समक्ष यह उदाहरण रखा-- "उस परम तत्व को तर्क वितर्क, वाद विवाद द्वारा प्रतिष्ठित नहीं किया जा सकता। "जो उसको जान लेता है, उसका साक्षात्कार कर लेता है, वह वाद विवाद से ऊपर उठकर विनम्र हो जाता है।
अजातशत्रु गार्ग्य को समझाते हुए कहते हैं-- "नींद में ऊँघ रहे व्यक्ति को कितनी ही बड़ी बड़ी बातें कही जाए उसे उनसे कोई लाभ नहीं होगा। जागा हुआ व्यक्ति ही कही गयी बात को सुन व समझ सकता है।
यह कथन आंतरिक जागृति की ओर संकेत कर रहा है। क्योंकि जब व्यक्ति अज्ञानता की नींद से जागता है, तब ही वह सच्चाई को सुनने व समझने योग्य बन पाता है।
**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**
"श्री रमेश जी"
