**महाराज जी का समाधि में जाना दिव्य लीला है। जब लीला पूर्ण करने की घड़ी आएगी, तो वे अपने आप समाधि से उठ जाएंगे।**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                     श्री आर सी सिंह जी 

ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष जब भी लीला करते हैं, तो वह सामान्य बुद्धि से समझ आने वाला विषय नहीं होता है। जैसे भगवान श्रीराम का सीता हरण के पश्चात विलाप करना और सती का संशय करना। श्री राम का नागपाश में बंधना और गरूड़़ का भ्रमित होना। दोनों पात्र दुविधा ग्रस्त होकर सोच बैठे-  श्री राम ईश्वर नहीं हैं। पर  वहीं कुछ ऐसे भक्त चरित्र भी थे, जिन्हें यह नहीं पता था कि सीता हरण कैसे हुआ?किसने किया? सीता जी कब वापिस मिलेंगीं? कहां से मिलेगी, कैसे मिलेगी? रावण युद्ध में क्या-क्या घटेगा? कौन मरेगा, कौन बचेगा?श्रीराम नागपाश से कैसे और कब मुक्त होंगे? इन प्रश्नों में से एक का भी उत्तर वे नहीं जानते थे। ये सब ना जानते हुए भी वे यह भली-भांति जानते थे कि श्री राम साक्षात परमेश्वर हैं। सृष्टि के प्रतिपालक हैं। उनका रोना, उनका बंधना सब लीला है। धर्म स्थापना के लिए रचाई गई दिव्य क्रीड़ाएं हैं। इसलिए महत्वपूर्ण यह नहीं है कि  भक्त भविष्य के घटनाक्रम को कितना जानते हैं, बल्कि महत्व इस बात का है कि भक्त अपने भगवान को कितना जान पाए हैं। ऐसे ही भक्त पूरे दावे से कहते हैं- सत्य की विजय निश्चित है। इसलिए हमारे भगवान की जीत भी सुनिश्चित है। इसी प्रकार गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के हमारे जैसे लाखों साधक, जिन्हें उन्होंने ब्रह्मज्ञान की दीक्षा देकर ईश्वर का दर्शन कराया, वे भी भली-भांति यह जानते हैं कि श्री महाराज जी इस युग के पूर्ण सद्गुरु और असाधारण दिव्य विभूति हैं। समाधि में जाना उनकी दिव्य लीला मात्र है। विश्व शांति और नवयुग की स्थापना के लिए यह अलौकिक क्रीड़ा की गई है। जब लीला पूर्ण करने की घड़ी आएगी, तो वे अपने आप समाधि से उठ जाएंगे। नवयुग के विजय बिगुल बज उठेंगे।यह निश्चित ही निश्चित है!

**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**

"श्री रमेश जी"

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