हिन्दी है आजादी मेरी और माथे की है बिन्दी।

 

भागीरथी सांस्कृतिक मंच,  गोरखपुर की 758 वी काव्य गोष्ठी हिन्दी पखवाड़ा केअन्तर्गत कृति कल्चरल संस्थान के तत्वावधान में आयोजित किया गया।

कार्यक्रम दो सत्र में सम्पन्न हुआ।

कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ मां सरस्वती के चरणों में पुष्पार्चन एवं प्रियंका दुबे 'प्रबोधिनी'  की वाणी वंदना से हुआ।

प्रथम सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि व समालोचक श्री प्रमोद कुमार जी ने एवं संचालन डा.सत्य नारायण पथिक ने किया व द्वितीय सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि श्री वागीश्वरी मिश्र वागीश जी ने  एवं संचालन कुन्दन वर्मा पूरब ने किया।

परिचर्चा का विषय था - क्या हिन्दी वैश्विक भाषा बनने की ओर अग्रसर है ?

चर्चा में भाग लेते हुये कृति कल्चरल संस्थान की निदेशक डॉ.उषा कुमार जी ने कहा - भारत के जो लोग विदेशों में जाकर बसें, उससे हिन्दी का प्रचार-प्रसार विदेशों में ज्यादा हुआ।

अध्यक्षता कर रहे प्रमोद कुमार जी ने कहा - हमें अपनी भाषा को बचाने की जरूरत है, क्योंकि भाषाएं मर रहीं हैं। हमें पढ़ने की जरूरत है, क्योंकि अंग्रेजी का प्रभाव इतना है।  हमें अपने व्यवहार में चीज़ों को अपनाने की जरूरत है।

द्वितीय सत्र में काव्य पाठ करते हुये कवि व आलोचक शशिबिन्दु नारायण मिश्र ने हिन्दी की बात की -

तपते जेठ के बाद वर्षा की फुहार है हिन्दी,

हिन्दी है आजादी मेरी और माथे की है बिन्दी।

तत्पश्चात युवा कवयित्री प्रियंका दूबे प्रबोधिनी ने बेटी दिवस पर कटाक्ष करते हुये पढ़ा --

बेटियों को बहुत सिखाये गुन आपने हैं,

बेटों को जरा कुछ ढंग तो सिखाइए।

अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि वागीश्वरी मिश्र वागीश जी ने प्रसिद्धि की बात को नये अंदाज में कहा -

अब तक न कह सका एहसान कर दे कोई,

मैं चाहता हूं मुझको बदनाम कर दे कोई।

अन्य जिन कवियों ने परिचर्चा और काव्य पाठ किया उनके नाम है - श्रीमती सरिता सिंह, डॉ.उषा कुमार , डा.प्रतिभा गुप्ता, चंद्रगुप्त प्रसाद वर्मा अकिँचन , कुन्दन वर्मा पूरब, राम सुधार सिंह सैथवार,निर्मल गुप्त निर्मल,राम समुझ सांवरा, , हरिवंश शुक्ल हरीश , निरंकार शुक्ल साकार,जय प्रकाश नायक , प्रमोद कुमार, डा.सत्य नारायण पथिक आदि। श्रोताओं में श्री रंजय कुमार दूबे एवं डा. राकेश सिंह उपस्थित थे।

सभी के प्रति आभार व्यक्त किया संस्था प्रबंधक डा.सत्य नारायण पथिक ने।

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