गारल कपड़वा जस जिनगी हमार बा . * रामसुधार सिंह*

 

     श्री समसूधर सिंह *सैंथवार"

किरिपा क कइ द माई भक्तन पर '

 दे द अशिषवा दुआर तुहरे अइलीं ।

हरि  ल सबके दरदवा ' दुआर तुहरे अइलीं ।

गारल कपड़वा जस जिनगी हमार बा .

ओहू पर लोगन के हमसे बोखार बा ;

पड़ते समनवा सब मुह फेरि ले ला '

कोचेलें रोज लोग जाहिल गंवार बा ।

जियरा पर ताना क बरसे सटकवा ' दुआर तुहरे अइलीं ।

हरिल सबके दरदवा दुआर तुहरे अइलीं ॥

अँसुअन क बोझ ढोवत कइसो जियत बानी,

मंगले पर मिले नाईं बूँद भर पानी ;

फटहा कपड़वा पर लदल मइलिया ,

ढोवत बानी जिनगी क आपन कहानी | 

घिसटि घिसटि रोज ढूढ़ी नवका असरवा , दुआर तुहरे अइलीं ।

हरिल सबके दरदवा दुआर तुहरे अइलीं ॥

अब ते बा माई बस तुहरे सहारा .

कहीं नाईं ठौर सब कइलस किनारा ;

जिनगी क नइया अब तुहरे हवाले .

चाहे डुबाव चाहे बनव शिकारा ।

हाथ जोड़ीं ' पइयाँ पड़ी बिगड़ल सुधा र '  दुआर तुहरे अइलीं ।

हरिल सबके दरदवा दुआर तुहरे अइलीं ॥

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