सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीमनुष्य योनि में किया गया प्रत्येक कर्म उसी तरह से फलित होता है, जिस तरह से किसी खेत में कोई बीज बोया जाता है, तो उस बीज का फूल या फल एक निश्चित समय के बाद आता है। अर्थात् मनुष्य द्वारा किए गए सभी कर्मों-विकर्मोँ का फल भी एक निश्चित समय बाद अवश्य ही सुख-दुख रूप में आता है। यही प्रकृति का एक अटल सिद्धांत है। इसलिए हमें अपने जीवन में ध्यान साधना व सत्संग करते रहना चाहिए। क्योंकि सत्संग के अभाव में अक्सर पाप कर्मों के होने का बोध ही नहीं होता। हमारे-आपके घरों के आस-पास ऐसे कितने ही अलग-अलग जीव देखने में आते हैं। यह सभी जीव भी किसी जमाने में मनुष्य ही थे। यह सभी जीव भी अपने-अपने किये गये पाप कर्मों का फल भुगत रहे हैं।
आज के कलयुग में भौतिक विज्ञान में बहुत उन्नति हुई है। इसी से सुख सुविधा के साधनों में बहुत अधिक वृद्धि हो गई है। फिर भी भौतिक विज्ञान हमें केवल सुख सुविधा के साधन व स्वाद के साधन ही दे सकता है, जिनको भोगने की मनुष्य के भीतर सदा सामर्थ्य नहीं बनी रहती। क्योंकि 45-50 वर्ष की उम्र के बाद स्थूल इंद्रियों में विषयों को भोगने की शक्ति क्रमशः घटती जाती है। और दूसरी ओर इन साधनों को भोगने से मन को शांति भी नहीं मिलती। और अशांत मनुष्य जीवन में कभी भी सुखी नहीं हो सकता ।
हमारी आपकी स्थूल इंद्रियों द्वारा ही पढ़कर या सुनकर भौतिक ज्ञान लिया जाता है। लेकिन जो मन बुद्धि यानी सूक्ष्म शरीर द्वारा मान लिया जाता है, वही मन का हिस्सा यानी संस्कार बनता है। फिर एक लम्बे समय तक ऐसा व्यवहार में लाने से ही हमारा स्वभाव बनता है। लेकिन अक्सर अधिकांश लोग धर्म की बातें पढ़ते हैं, सुनते हैं और पसंद भी करते हैं। लेकिन मन से मानते नहीं, तो व्यवहार में लाना और संस्कारों का बनना तो दूर की बात है। फलस्वरूप कलयुग अधिक गहरा होता जा रहा है...।
*ओम् श्री आशुतोषाय नम*
"श्री रमेश जी"
Ashok kumar
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